माँ....

माँ

                      माँ

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कुछ ख़ामोश चेहरे के 
पीछे दर्द तो है लेकिन 
माँ उसे देखती  नहीं ,
खुद को अंधेरे मे रखकर 
जो रोशनी निकालती  है 
वो सूरज है माँ ,
परेशानी और दुःख 
किसके पास  नहीं लेकिन 
कलियों से फ़ूल खिलाती 
है माँ ,
देर रात जगकर हमे 
सुलाती  है माँ,
तन्हाई मे भी अपनों  
 का साथ है माँ ,
 मैं तो "माँ "की 
परिभाषा भी नहीं 
दे सकती ,
क्योकि मेरी हर 
साँस की हक़दार है माँ ,
कविता तो कोई भी 
लिख दे लेकिन इन 
कवियों की कविता का 
संसार है माँ ,
सच कहु तो 
ख़ुदा से कम नहीं है "माँ।

                                  -शैफाली