मैं बार -बार गिरती हूँ....


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मैं बार -बार गिरती हूँ
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मैं बार -बार गिरती हूँ 
फिर उठ खड़ी सवरती हूँ ,

सवरते -सवरते  फिसलती  हूँ 
फिर बार -बार उठती हूँ ,

कई बार उठ भी नहीं पाती 
इस क़दर गिरती हूँ ,

जिंदगी मे गिरना भी उतना 
उतना ही ज़रूरी है 
जितना जमीं से जुड़े रहना ,

जिंदगी जीना क्या है
गिर कर ही पता चलता है 
शायद इस लिए मैं बार -बार 
गिरती हूँ ,

जिंदगी हर बार कुछ नया 
सीखा कर चली जाती है 
इसलिए भी बार -बार 
गिर कर सवरती हूँ ,

दुनिया की तरह होशियार तो 
नहीं हूँ मैं 
फ़िर भी हर बात समझती हूँ ,

नादान हूँ मैं, नादानी भरी 
है मेरी बाते 
फ़िर भी दुनिया की 
होशियारी समझती हूँ मैं ,

इसलिए तो हर बार गिर हर 
सवरती हूँ  मैं। 

                  -शैफाली